12th Fail Movie Review: 12वीं फेल के आईपीएस बनने की प्रेरक कहानी, विक्रांत, अंशुमान और मेधा का अद्भुत अभिनय
Movie Review | 12th Fail |
कलाकार | विक्रांत मैसी , मेधा शंकर , अंशुमान पुष्कर , अनंत जोशी , हरीश खन्ना , संजय बिश्नोई , विकास दिव्यकीर्ति और प्रियांशु चटर्जी |
लेखक | विधु विनोद चोपड़ा (अनुराग पाठक की किताब 12th Fail पर आधारित) |
निर्देशक | विधु विनोद चोपड़ा |
निर्माता | विधु विनोद चोपड़ा और जी स्टूडियोज |
रिलीज | 27 अक्तूबर 2023 |
रेटिंग | 3.5/5 |
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विधु विनोद चोपड़ा को फिल्में बनाते 45 साल हो गए। उनके खाते में हिंदी सिनेमा की चंद बेहतरीन फिल्में मसलन ‘मुन्नाभाई एमबीबीएस’, ‘लगे रहो मुन्नाभाई’ और ‘थ्री ईडियट्स’ जमा हैं, लेकिन इनके निर्देशक वह नहीं हैं। विधु के निर्देशन का कमाल जिन फिल्मों में दिखा, उनमें ‘खामोश’, ‘परिंदा’ और ‘1942 ए लव स्टोरी’ जैसी कालजयी फिल्में शुमार हैं। फिल्म ‘12वीं फेल’ में विधु विनोद चोपड़ा ने फिर से अपना निर्देशकीय हुनर दिखाया है। वह शहर से निकले हैं। मध्य प्रदेश के गांवों की कहानी लेकर आए हैं। उन्होंने एक ऐसी फिल्म इस बार निर्देशित की है जिसे देखते हुए दर्शकों की आंखें भी भर आईं और लोग ने तालियां भी खूब बजाईं। हर युवा को ये फिल्म जरूर देखनी चाहिए। एक तो ये समझने के लिए कि जब अंधेरा बहुत गहरा हो तो रोशनी नजदीक ही होती है और दूसरे इसके लिए भी कि जवानी का प्रेम सिर्फ भटकाता ही नहीं है, अगर प्रेम सच्चा हो तो ये कामयाबी का सही रास्ता भी दिखाता है।
12th Fail: असली आईपीएस की फिल्मी कहानी
फिल्म ‘12th Fail’ की कहानी मुंबई में तैनात सहायक पुलिस आयुक्त मनोज कुमार शर्मा की कहानी है। वह मुंबई काडर के 2005 बैच के अधिकारी हैं और देश के दूसरे तमाम आईपीएस अफसरों की तरह उनकी भी इच्छा अपनी कहानी को परदे पर लाने की कब और क्यों कौंधी, ये तो वही जाने लेकिन उनकी ये कहानी ‘भौकाल’, ‘खाकी’ और ऐसी ही तमाम दूसरी उन अपराध वेब सीरीज से बिल्कुल अलग है जिनमें आईपीएस अफसर अपनी कार्यशैली से हीरो बनना चाहते हैं। अच्छा काम करना हर सरकारी कर्मचारी और अधिकारी का कर्तव्य है। और, ये काम जब मध्यप्रदेश का एक पीपीएस अधिकारी करता दिखता है तो गांव का गरीब मनोज उनसे प्रभावित हो जाता है। जिंदगी में पहली बार उसे कोई सिखाता है कि नकल करना अच्छी बात नहीं है। वह नकल नहीं करता है तो 12वीं में फेल हो जाता है। फिर ईमानदारी से पढ़ता है तो थर्ड डिवीजन पास होता है। स्नातक होने के बाद दादी अपनी सारी जमा पूंजी उसे सौंप देती हैं कि वह शहर जाए और एक दिन खाकी वर्दी पहनकर घर लौटे। चंबल का मामला है ना। डकैतों के इलाके में बंदूक की ही इज्जत होती है। पिता उसका खांटी ईमानदार रहा और निलंबित हो गया। बेटे ने घर का सम्मान लौटाने की ठानी है। और, संघ लोक सेवा आयोग के इंटरव्यू में गरीबों की बेइज्जती कैसे की जाती है, इसको उजागर करने की बात असली मनोज कुमार शर्मा ने ठानी है।
12th Fail: लेखन टीम का सराहनीय कार्य
अनुराग पाठक के लिखे उपन्यास ‘12th Fail’ पर बनी फिल्म के लेखन का तमगा वैसे तो विधु ने अपने पास ही रखा है लेकिन अच्छा लगा था देखकर जब ट्रेलर की एंड प्लेट पर उनकी इस फिल्म की लेखन टीम के तीन और नाम जसकुंवर कोहली, अनुराग पाठक व आयुष सक्सेना के नाम भी विधु के ठीक नीचे वाली लाइन में उतने ही मोटे अक्षरों में लिखे दिखे। फिल्म ‘परिंदा’ के संवाद लेखक इम्तियाज हुसैन आज तक इस दर्द से बाहर नहीं आ पाए हैं कि उनके लेखन का सही इकराम उन्हें नहीं मिला। फिल्म ‘12वीं फेल’ की मजबूती इसके लेखन में ही है। विधु विनोद चोपड़ा ने इसके बाद बस अपनी टीम के साथ उसे लोकेशन पर जाकर ढंग से शूट कर लिया है। उन्होंने अपने पुराने फिल्मी पैंतरे छोड़े हैं और सिनेमा की उस मूल भावना को इस फिल्म में पकड़ा है जो दर्शकों और किरदारों के बीच एक भावनात्मक रिश्ता बनाने के काम आती है।

विक्रांत मैसी की अद्भुत अदाकारी
फिल्म ‘सुपर 30’ में ऋतिक रोशन की तरह यहां भी विक्रांत मैसी को भूरे रंग में रंगा गया है और यही इस फिल्म की सबसे कमजोर कड़ी है। विक्रांत मैसी वैसे ही कौन से अंग्रेज जैसे दिखते हैं, जिन्हें गरीब दिखाने के लिए उन पर भूरा रंग पोतना पड़े। गरीबी का रंग आर्थिक होता है, चमड़ी का रंग नहीं। गांवों में तो गरीबों के बच्चे भी इतने गोरे चिट्टे और सुंदर होते हैं कि उनकी बेबी पिक्चर किसी फिल्मी सितारे की बचपन की फोटो से कम सुंदर नहीं होती। लेकिन, वे खेत की मेड़ों पर बड़े होते हैं, और यहां ये सब मर्सिडीज में। खैर, इसके बावजूद विक्रांत मैसी ने अपने अभिनय में चंबल जीने की बहुत ही अच्छी कोशिश की है। पाखाना साफ करना, लाइब्रेरी की किताबों पर जमी धूल हटाना, आटा चक्की चलाकर वहीं अपनी धूनी जमाना और इंटरव्यू में फेल हो जाने की कीमत तक सच्चाई को पकड़े रहना, एक किरदार के ये इतने सारे रंग है जिन्हें एक ही फिल्म में जी पाना आसान नहीं है। लेकिन, विक्रांत मैसी सिर्फ इसीलिए परदे पर सौ फीसदी अंकों के साथ इन्हें जी पाए क्योंकि उनके पास टेलीविजन और ओटीटी का अपार अनुभव है। बढ़िया काम रहा इस बार विक्रांत मैसी का।
अंशुमान, अनंत और हरीश का हरकारा
विक्रांत मैसी के अलावा फिल्म ‘12वीं फेल’ की मजबूती ओटीटी के दूसरे नामचीन कलाकारों से भी आती है। अंशुमान पुष्कर के किरदार का आईएएस न बन पाने पर वहीं मुखर्जी नगर में चाय की दुकान लगाकर दूसरों की मदद करने का जज्बा दिल को कचोट लेता है। इस किरदार में अंशुमान के भीतर का कलाकार अपनी पूरी रवानी में बड़े परदे पर दिखता है। मनोज शर्मा के जीवन में देवदूत बनकर आने वाले पीडब्ल्यूडी ठेकेदार के बेटे के किरदार में ‘कटहल’ वाले अनंत जोशी का काम अच्छा है। मनोज के पिता के रोल में हरीश खन्ना ने इस किरदार की ईमानदारी के गुमान और फिर अपनी मां को खो देने के बाद भ्रष्टाचार के आगे घुटने टेकने को तैयार हो जाने की मजबूरी को बहुत ही बढ़िया तरीके से परदे पर पेश किया है।
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मेधा शंकर का ‘मार्वलस’ डेब्यू
फिल्म में श्रद्धा जोशी का किरदार निभाने वाली मेधा शंकर की ये पहली फिल्म बताई जाती है और अपने रूप की बजाय अपनी मेधा को अपने अभिनय का अस्त्र बनाने का उन्होंने बहुत ही सुंदर प्रयोग इस फिल्म में किया किया है। अपने चरित्र पर लगे लांछन को लेकर अपने पिता से सीधी और दो टूक बात करने का श्रद्धा के किरदार का अभिनय मेधा की प्रतिभा की बानगी है। उनसे हिंदी सिनेमा को कुछ अच्छी उम्मीदें बंधती हैं। विक्रांत मैसी के साथ उनको जोड़ी खूब फबी है। उनके अलावा फिल्म में विकास दिव्यकीर्ति को देखना भी सुखद रहा। कभी कोई उनकी भी बायोपिक बनाए तो कमाल की फिल्म होगी। कितने लोग होंगे इस देश में जो आईएएस की नौकरी छोड़ दूसरों को आईएएस बनाने की ठाने बैठे हैं!
शानदार सिनेमैटोग्राफी, कमजोर संगीत
फिल्म अपनी दृश्यावलियों में बहुत समृद्ध है। गांव-देहात तो वैसे ही ड्रोन कैमरे से बहुत खूबसूरत दिखता है। रंगराजन रामबद्रन ने मुखर्जी नगर की गलियों को भी जीवंत कर दिया है। संघ लोक सेवा आयोग के बाहर भीतर के दृश्य उनकी कलात्मक सिनेमैटोग्राफी का नमूना हैं। विधु विनोद चोपड़ा ने जसविंदर कोहली के साथ मिलकर फिल्म का संकलन खुद ही किया है और इसमें दिक्कत वहां आती है जहां वह मनोज की लाचारी दिखाने के लिए लंबा समय लेते हैं। फिल्म सिर्फ 90 मिनट की होती तो यकीनन ये ‘फोर स्टार’ फिल्म हो सकती थी। संगीत पक्ष फिल्म का कमजोर है। स्वानंद किरकिरे और शांतनु मोइत्रा को कुछ दिन मुखर्जी नगर में बिताने चाहिए थे तो उनको समझ आता कि अब भी वहां का सबसे हिट गाना, ‘लग जा लगे कि फिर ये हंसी रात हो न हो..’ ही क्यों है..!